Wednesday, February 11, 2009

रूठे दिल को मनाना,मैं नहीं चाहतीझूठे ख्वाब इसे दिखाना,मैं नहीं चाहती,कुछ न मिलेगा इस आलम-ऐ-हस्ती मेंये बात इससे छिपाना,मैं नहीं चाहती,रहना है गर यहाँ ज़फा सहनी ही होगीयूँ झूठा प्यार जताना,मै नहीं चाहती,इक आँख से ना रो कर दोनों से रो लेगम-ऐ-दिल से मुस्कुराना,मैं नहीं चाहती,टकराते हैं जज़्बात जैसे साहिल से लहरेंतूफ़ान में इसे बहाना,मैं नहीं चाहती,इक अरसे से धडकनों की सरगम नहीं सुनीबिन साज़ के तराना,मैं नहीं चाहती,उठ खडा हो कब तक मायूस बैठेगा दिलअपने लफ्जों से तुझे सताना,मैं नहीं चाहती...(आलम-ऐ-हस्ती=दुनिया)(ज़फा=ज़ुल्म)